Month: सितम्बर 2017

दैनिक प्रार्थना

गायक/गीतकार रोबर्ट हैमलेट ने “लेडी हु प्रेज़ फॉर मी” गीत अपनी माँ के सम्मान में लिखी जिन्होंने प्रति भोर अपने बेटों के बस स्टॉप जाने से पूर्व उनके लिए प्रार्थना की l हैमलेट की युवा माँ ने उसका गीत सुनकर, उसके साथ प्रार्थना करने का निश्चय किया l परिणाम आनंदित करने वाला था! उस बेटे के बाहर जाने से पूर्व, उसकी माँ ने उसके लिए प्रार्थना की l पाँच मिनट बाद वह अपने साथ कुछ और बच्चों को लेकर लौटा! उसकी माँ ने चकित होकर उससे पूछा कि क्या बात है l बेटे का उत्तर था, “इनकी माताएँ इनके लिए प्रार्थना नहीं करती हैं l”

इफिसियों की पत्री में, पौलुस “हर समय और हर प्रकार से ... प्रार्थना” करने को कहता है  (6:18) l परिवार में सबको परमेश्वर पर दैनिक भरोसा प्रगट करना चाहिए क्योंकि बच्चे अपने निकट के लोगों को विश्वास करते देखकर ही परमेश्वर पर भरोसा करना सीखते हैं (2 तीमु. 1:5) l बच्चों के लिए  और उनके साथ  प्रार्थना करना ही उनको प्रार्थना का परम महत्त्व सिखाने का अहम् तरीका है l यह उनके लिए विश्वास से परमेश्वर के पास व्यक्तिगत रूप से जाने का ज़रूरी कारण समझने का एक तरीका है l

जब हम परमेश्वर में “असली विश्वास” की शिक्षा प्रगट रूप से “[बच्चों] को ... देना आरम्भ करते हैं” (निति. 22:6; 2 तीमु. 1:5), हम उनको एक विशेष इनाम, भरोसे से देते हैं कि परमेश्वर हमारे जीवनों में हमेशा उपस्थित रहकर निरंतर प्रेम, मार्गदर्शन, और सुरक्षा देता है l

पूरी दौड़

2016 के रिओ ओलंपिक्स में, 5,000 मीटर दौड़ में दो धावकों ने संसार का ध्यान आकर्षित किया l 3,200 मीटर दौड़ के बाद, न्यूज़ीलैण्ड की निक्की हैम्बलिन और अमरीका की एबे डीऔगुस्तटिनो आपस में टकराकर गिर गयीं l एबे तुरन्त खड़ी हो गयी, किन्तु निक्की की मदद करने ठहर गयी l क्षण भर बाद दोनों धावक दौड़ने लगे, और एबे गिरने के कारण दायीं पैर में चोट से लड़खड़ाने लगी l अब निक्की की बारी थी कि दौड़ पूरी करने के लिए ठहर कर सह-धावक को उत्साहित करे l एबे के लड़खड़ाने के बाद, निक्की समापन रेखा पर आख़िरकार, उसे गले लगाने के लिए खड़ी थी l आपसी उत्साह का कितना सुन्दर तस्वीर!

यह मुझे बाइबिल का एक परिच्छेद याद दिलाता है : “एक से दो अच्छे हैं .... यदि उनमें से एक गिरे, तो दूसरा उसको उठाएगा; परन्तु हाय उस पर जो अकेला होकर गिरे और उसका कोई उठानेवाला न हो” (सभो. 4:9-10) l आत्मिक दौड़ में धावक होकर, हमें परस्पर सहायता चाहिए-शायद और अधिक, क्योंकि हम दौड़ प्रतियोगिता में नहीं हैं किन्तु एक ही टीम के सदस्य हैं l गिरने के क्षण होंगे जहाँ उठने में किसी की मदद चाहिए; दूसरे क्षणों में किसी को प्रार्थना और उपस्थिति द्वारा उत्साह की आवश्यकता होगी l

आत्मिक दौड़ में अकेला नहीं दौड़ा जाता l क्या परमेश्वर आपको किसी के जीवन में निक्की या एबे बना रहा है? आज ही तुरंत मदद देकर, दौड़ पूरी करें!

सर्वोत्तम भाग

“उसका टुकड़ा मेरे से बड़ा है!”

बचपन में घर में बनी मिठाई के टुकड़े माँ से मिलने पर हम भाई एक दूसरे से लड़ते थे l एक दिन पिता ने अपनी भौंवें चढ़ाकर हमारे हरकत देखे, और अपना प्लेट उठाकर माँ को देखकर मुस्कराए : “कृपया मुझे अपने हृदय के बराबर टुकड़ा दो l” हम दोने भाई हैरान होकर  माँ को हँसते हुए उनको सबसे बड़ा टुकड़ा देते हुए देखा l

परायी सम्पत्ति पर ध्यान देने से बहुत बार ईर्ष्या होती है l फिर भी परमेश्वर का वचन हमारे ध्यान को सांसारिक सम्पत्ति से कुछ अधिक मूल्यवान पर ले जाता है l भजनकार लिखता है, “यहोवा मेरा भाग है; मैंने तेरे वचनों के अनुसार चलने का निश्चय किया है l मैं ने पूरे मन से तुझे मनाया है” (भजन 119:57-58) l पवित्र आत्मा से प्रेरित होकर लेखक ने सच्चाई बतायी कि परमेश्वर के निकट रहना सबसे महत्वपूर्ण है l    

हमारे प्रेमी और असीम सृष्टिकर्ता से अधिक हमारा बेहतर भाग और क्या हो सकता है? संसार की किसी वस्तु से उसकी तुलना नहीं, और कुछ भी उसे हमसे छीन नहीं सकता l मानवीय इच्छा बड़ा खालीपन है; किसी के पास संसार का “सब कुछ” हो सकता है  और फिर भी अभागा l किन्तु जब परमेश्वर हमारा आनंद है, हम वास्तव में संतुष्ट हैं l हमारे अन्दर एक खाली स्थान है जिसे केवल परमेश्वर ही भर सकता है l वही हमारे हृदयों में अनुकूल शांति दे सकता है l

निदेशक को देखें

विश्व-प्रसिद्ध वायलिन वादक, जोशुआ बेल, चालीस सद्सीय चैम्बर ऑर्केस्ट्रा, अकादमी ऑफ़ सैंट मार्टिन इन द फ़ील्ड्स, का निर्देशन अनोखे तौर से करते हैं l छड़ी से इशारा करने की बजाए वे अपने इतालवी वायलिन को दूसरे वायलिन वादकों के साथ बजाते हुए निर्देशन देते हैं l बेल ने कोलोराडो पब्लिक रेडियो से कहा, “ वायलिन बजाते हुए मैं उस वक्त उनके समझने लायक सब प्रकार के निर्देशन और संकेत दे सकता हूँ l वे मेरे वायलिन के प्रत्येक झुकाव को जानते हैं, या मेरे भौं के ऊपर उठाने को, या जिस तरह मैं अपने को धनुष के रूप में झुकाता हूँ l वे जानते हैं कि मैं पूरे ऑर्केस्ट्रा से कैसी आवाज़ चाहता हूँ l”

जिस तरह ऑर्केस्ट्रा के सदस्य जोशुआ बेल पर ध्यान केन्द्रित करते हैं, बाइबिल हमें हमारे प्रभु यीशु पर अपनी निगाहें रखने को कहती है l इब्रानियों 11 में विश्वास के अनेक नायकों की सूची के बाद, लेखक कहता है, “इस कारण जब कि गवाहों का ऐसा बड़ा बादल हम को घेरे हुए है, तो आओ, हर एक रोकनेवाली वस्तु और उलझानेवाले पाप को दूर करके, वह दौड़ जिसमें हमें दौड़ना है धीरज से दौड़ें, और विश्वास के करता और सिद्ध करनेवाले यीशु की ओर ताकते रहें” (इब्रा.12:1-2) l

यीशु ने प्रतिज्ञा की, “मैं जगत के अंत तक सदा तुम्हारे संग हूँ” (मत्ती 28:20) l क्योंकि वह है, उसके हमारे जीवन के संगीत का निर्देशन करते समय हमारे पास उसकी ओर देखने का अद्भुत सुअवसर है l

बाधाएँ हटाना

मैं मेरी को पूर्व कैदियों को समाज में जोड़नेवाला आश्रय-“द हाउस”-में हर मंगलवार को देखती थी l मेरा जीवन उससे भिन्न था : वह जेल से अभी-अभी बाहर आई थी , नशे की लत से जूझ रही थी, अपने पुत्र से अलग थी l आप कह सकते हैं कि वह समाज के बाहर रहती थी l

मेरी की तरह, उनेसिमुस भी था l एक दास के रूप में, उनेसिमुस ने अपने मसीही स्वामी, फिलेमोन को हानि पहुँचाकर, अब जेल में था  जहां पर, पौलुस से मुलाकात करके उसने मसीह पर विश्वास किया (पद.10) l बदला हुआ व्यक्ति होने के बावजूद, उनेसिमुस अभी भी दास ही था l पौलुस ने पत्र के साथ उसे फिलेमोन के पास भेजा और उससे उनेसिमुस को “दास की तरह नहीं वरन् दास से भी उत्तम, अर्थात् भाई के समान” (फिलेमोन 1:16) ग्रहण करने का अनुरोध किया l

फिलेमोन के पास चुनाव था : वह उनेसिमुस से एक दास की तरह बर्ताव कर सकता था या उसे मसीह में एक भाई की तरह ग्रहण कर सकता था l मुझे भी चुनाव करना था l क्या मैं मेरी को एक पूर्व-बंदी और नशे से उबरने वाली की तरह देखूं अथवा मसीह की सामर्थ्य से बदले हुए जीवन के रूप में? मेरी प्रभु में मेरी बहन थी, हमारे पास विश्वास की यात्रा में संग चलने का मौका था l

हम सामाजिक-आर्थिक दर्जा, वर्ग, अथवा सांस्कृतिक भिन्नता को हमें अलग करने की अनुमति दें, यह सरल है l मसीह का सुसमाचार इन बाधाओं को हटाकर, हमेशा के लिए हमारे जीवन और संबंधों को बदल देता है l

क्रोध प्रबंधन

जब मैं एक सहेली के संग रात्री भोजन कर रही थी, उसने बताया कि वह परिवार के एक ख़ास सदस्य से ऊब चुकी है l किन्तु वह अनदेखा करने अथवा उपहास करने की उसकी कष्टकर आदत के विषय उससे कुछ कहने में हिचकिचाती थी l समस्या के विषय जब उसने उसका सामना करना चाहा, उसने निन्दापूर्ण आलोचना की l वह उससे अत्यधिक क्रोधित हुई l दोनों पक्षों के एक दूसरे के विरुद्ध बोलने से, पारिवारिक फूट बढ़ गयी l

मैं भी ऐसी हूँ, क्योंकि मैं भी क्रोध से ऐसे ही पेश आती हूँ l मैं भी लोगों का सामना करने में कठिनाई महसूस करती हूँ l यदि कोई मित्र या परिवार का कोई सदस्य कुछ गन्दी बातें बोलता है, मैं अक्सर अपनी भावनाओं को दबा देती हूँ जब तक कि वह व्यक्ति या कोई और आकर कुछ और गन्दी बातें कहता या बोलता नहीं है l थोड़े समय बाद मैं, अधिक क्रोधित हो जाती हूँ l

इसलिए इफिसियों 4:26 में प्रेरित पौलुस ने कहा, “सूर्य अस्त होने तक तुम्हारा क्रोध न रहे l” अनसुलझी बातों के लिए समय सीमा निर्धारित करने पर क्रोध नियंत्रित रहता है l किसी गलती को बढ़ाने की अपेक्षा, जो कड़वाहट का घर है, हम परमेश्वर के “प्रेम में सच्चाई [बोलें]” (इफि.4:15) l

क्या किसी के साथ समस्या है? उसे पकड़े रहने की अपेक्षा परमेश्वर को प्रथम रखें l वह क्षमा और प्रेम की सामर्थ्य से क्रोध की आग बुझा सकता है l

आपके पिता का नाम क्या है?

मध्यपूर्व के क्षेत्र में मोबाइल फ़ोन खरीदते समय, मुझसे कुछ ख़ास प्रश्न पूछे गए : नाम, राष्ट्रीयता, पता l किन्तु उसके बाद क्लर्क ने फॉर्म भरते समय पूछा, “आपके पिता का नाम क्या है? मैं चकित हुई, और मैंने सोचा यह क्यों ज़रूरी है l मेरी संस्कृति में यह ज़रूरी नहीं है, किन्तु मेरी पहचान के लिए यहाँ यह ज़रूरी था l कुछ संस्कृतियों में, वंशावली ज़रूरी है l

इस्राएली भी वंशावली का महत्त्व मानते थे l वे अपने कुलपिता अब्राहम पर घमंड करते थे, और उनकी सोच में उनका अब्राहम का कुल का होना ही उनको परमेश्वर की संतान बनाता था l उनके अनुसार, उनकी मानवीय वंशावली उनके आत्मिक परिवार से जुड़ा था l

सैंकड़ों वर्ष बाद यहूदियों से बातचीत में, यीशु ने स्पष्ट किया कि यह ऐसा नहीं है l वे अब्राहम को अपना भौतिक पिता मान सकते थे, किन्तु यदि वे उससे प्रेम नहीं करते थे जिसे पिता ने भेजा था तो वे परमेश्वर के परिवार के नहीं थे l

आज भी वही सार्थक है l हम अपना भौतिक परिवार नहीं चुनते हैं, किन्तु हम अपना आत्मिक परिवार चुन सकते हैं जिसके हम हिस्से हैं l यीशु के नाम पर विश्वास करके, परमेश्वर हमें उसकी संतान बनने का अधिकार देता है (यूहन्ना 1:12) l

आपका आत्मिक पिता कौन है? क्या आपने यीशु का अनुसरण करने का चुनाव किया है? आज आप अपने पापों की क्षमा के लिए यीशु पर विश्वास करके परमेश्वर के परिवार का हिस्सा बन जाएँ l

हमारे पास एक राजा है!

मेरी इच्छानुसार न होने पर अपने पति पर हानिकारक शब्दों से वार करने के बाद, मैंने पवित्र आत्मा के अधिकार का अपमान किया जब उसने बाइबिल पदों से मेरे पापी आचरण को उजागर किया l क्या मेरा अड़ियल घमण्ड मेरे विवाह में सम्बंधित हानि अथवा परमेश्वर के प्रति अनाज्ञाकारी होने के लायक था? बिल्कुल नहीं l किन्तु प्रभु और अपने पति से क्षमा मांगने से पूर्व मैंने अपने पीछे जख्में छोड़ी थीं अर्थात् बुद्धिमान सलाह की अवहेलना और केवल खुद के प्रति जवाबदेह होने का परिणाम l

एक समय इस्राएली विद्रोही थे l मूसा की मृत्यु बाद, यहोशू इस्राएलियों को प्रतिज्ञात देश में ले चला l उसकी अगुवाई में इस्राएलियों ने परमेश्वर की सेवा की (न्यायियों 2:7) l किन्तु यहोशू और उसकी पीढ़ी की मृत्यु बाद, अगली पीढ़ी के लोग परमेश्वर और उसके काम को भूल गए (पद.10) l उन्होंने ईश्वर की अगुवाई को त्यागकर पाप को गले लगाया (पद.11-15) l

परमेश्वर द्वारा राजा की तरह काम करनेवाले न्यायी खड़ा करने के बाद, स्थिति में सुधार आया (पद.16-18), l किन्तु प्रत्येक न्यायी की मृत्यु बाद, इस्राएलियों ने परमेश्वर का विरोध किया l उन्होंने केवल खुद के प्रति जवाबदेही का जीवन जीकर, हानिकारक परिणाम भुगता (पद.19-22) l किन्तु यह हमारी असलियत न हो l हम खुद को अनंत शासक यीशु के बड़े अधिकार के आधीन कर सकते हैं जिसके पीछे चलने के लिए हम बनाए गए हैं, क्योंकि वह हमारा जीवित न्यायी और राजाओं का राजा है l

थोड़ा ठहरें

तीन सम्बन्धित फिल्मों के सेट द लार्ड ऑफ़ द रिंग्स की चर्चा में, एक किशोर ने कहा कि उसे उसकी कहानियाँ फिल्म की अपेक्षा पुस्तक के रूप में पसंद हैं l कारण पूछे जाने पर, उस युवक ने उत्तर दिया, “मैं अपना समय लेकर पुस्तक को पढ़ सकता हूँ l” एक पुस्तक को पढ़ते रहने के प्रभाव के विषय कुछ कहना होगा, विशेषकर बाइबिल, और उसमें की कहानियों में “ठहरे रहना l”

“विश्वास का अध्याय” इब्रानियों 11, उन्नीस लोगों के नाम बताता है l हर एक कठिनाई और शंका के मार्ग पर चला, फिर भी परमेश्वर के प्रति आज्ञाकारी रहा l “ये सब विश्वास ही की दशा में मरे; और उन्होंने प्रतिज्ञा की हुई वस्तुएं नहीं पाईं, पर उन्हें दूर से देखकर आनन्दित हुए और मान लिया कि हम पृथ्वी पर परदेशी और बाहरी हैं” (पद.13) l

बाइबिल को पढ़ते हुए उसमें वर्णित लोगों और घटनाओं पर विचार किये बगैर पढ़ना कितना सरल है l हमारी खुद की बनाई हुई समय-सारणी हमें परमेश्वर की सच्चाई और हमारे जीवनों के लिए उसकी योजनाओं की गहराइयों में जाने से रोकती है l किन्तु, उसके वचन में ठहरे रहने से, हम खुद को हमारी ही तरह लोगों के वास्तविक जीवन घटनाओं में गिरफ्तार पाते हैं जिन्होंने परमेश्वर की विश्वासयोग्यता पर अपने जीवनों को आधारित किया l  

परमेश्वर के वचन को खोलकर यह याद करना अच्छा है कि हम देर तक उसमें ठहर सकते हैं l